आगाज
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जियो ऐसे वतन की
सरपरस्ती में लहू का एक कतरा
भी गिरे आगाज हो जाए !
ग़ुलामी के शिकंजे से निकलने
की इबादत से
ये मिट्टी चूम कह दो वहीं
आगाज हो जाए !
मुकद्दर है भला अपना
जन्म भारत में पाए हैं
बना दो शान मिट्टी की
और एक आगाज हो जाये !
जहाँ नदियों को पूजा और
उनको माँ कहा जाये
उसी धरती को पूजो
और एक आगाज हो जाये !
यहाँ श्रीराम और श्रीकृष्ण का
आना हुआ जैसे
बनो आदर्श तुम ऐसे
की एक आगाज हो जाये !
कलम कलाम के जैसी
यहाँ टैगोर की छवि है
निराला और दिनकर की तरह
इस देश में कवि हैं
भुलाकर खुद को तुम खोजो
और एक आगाज हो जाये!
– सूर्यबाला मिश्रा "अपराजिता"
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