*******************************************
जागो कि हमको जगाती ये धरती
ये कब थी चिखों से चित्कारती धरती
ये तो हे दुश्मन को ललकारती धरती।
देवों की धरती,यह मुनियों की धरती है।
धीरों की बस्ती,ये वीरों की बस्ती हैं।
वेदों की गंगा यहां,ऋषियों की कश्ती है।
डुबो दे जो हमको,यहां किसकी वो हस्ती है।
जागो कि हमको जगाती ये धरती
ये कब थी चिखों से चित्कारती धरती
ये तो हैं दुश्मन को ललकारती धरती।
राम की धरती,ये कृष्ण की धरती।
दुष्टों के सिर को,कुचलती ये धरती।
शुरों का अर्जन,यहां सिहों सा गर्जन हैं
छलता जो हमको, यहां उसका ही मर्दन है
जागो कि हमको जगाती ये धरती
ये कब थी चिखों से चित्कारती धरती
ये तो हैं दुश्मन को ललकारती धरती।
दुर्गा की धरती,ये काली की धरती।
जीवन प्रदाई जगदम्बा की धरती।
सीता की धरती,ये सावित्री की धरती।
मात्तृ स्वरुपा अपार शक्ति की धरती।
जागो कि हमको जगाती ये धरती
ये कब थी चिखों से चित्कारती धरती
ये तो हैं दुश्मन को ललकारती धरती।
आया तो था,एक सिकन्दर यहां भी।
पर चलती हैं कब,यहां आतातायी की मर्जी।
क्रूरों को ,सबक जो सिखाती ये धरती।
यही तो हैं हमारे स्वाभिमान की धरती।
जागो कि हमको जगाती ये धरती
ये कब थी चिखों से चित्कारती धरती
ये तो हैं दुश्मन को ललकारती धरती।
धीर भरी ,वसुधेव की धरती।
विश्व कुटुम्ब आधार की धरती।
पर घात सहे क्यों,ये हैं वीरों धरती।
ऐसी हैं ये, सद्चरितों की धरती।
जागो कि हमको जगाती ये धरती
ये कब थी चिखों से चित्कारती धरती
ये तो थी दुश्मन को ललकारती धरती।
अब हटा दो दिलों से ये कायरता के पहरे।
फिर सजा दो सरो पे वो वीरता के सहरे।
कि विश्व गुरु थे ,फिर विश्व गुरु बन।
रचा दो वही स्वर्णिम इतिहास की धरती।
–भारती नामदेव
No comments:
Post a Comment