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वक़्त लिखूँ, या हालात लिखूँ,
दिल मे भरे जज़्बात लिखूँ।
जिंदगी कैसे कटी या कैसे जी पायी,
या फिर किस किसने दिए कितने आघात लिखूँ।।
मै हर रोज बैठकर के यही सोचा करूँ,
जख्म गहरे है इनको भला कैसे भरूं।
आँख के आँसुओ ने की कितनी बरसात लिखूँ,
या फिर उन आँसुओ पर हुए कितने सवालात लिखूँ।।
कोई अपना बनकर इस जिंदगी मे आके गया,
और कोई अपना नहीं होता ये भी समझाके गया।
जिंदगी है खुशनुमा या जीवन उदास लिखूँ,
या फिर कौन कितना गैर है और कौन कितना खास लिखूँ।।
मै लिखने अगर बैठूं तो समय का पता ना चले,
मै कितना सुबह लिखूँ और कितना लिखूँ शाम ढले।
किसी से पहली मुलाक़ात लिखूँ,
या फिर उससे मिली दर्द की सौगात लिखूँ।।
जिंदगी कैसे कटी या फिर कैसे जी पायी,
या फिर किस किसने दिए कितने आघात लिखूँ।।
– पूनम सिंह भदौरिया
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