प्यारा सा सपना
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इक प्यारा घर अपना सालगे जो सपना सा
दिखा जो सपने में
वो सपना तो सपना था
सपने का हसीन नजारा था
महलों सा प्यारा था
बगिया थी फूलों की
कुक थी कोयलों की
झरना इक बहता था
सांझ की बेला में
जब चाँदनी भी आकर के
झरने में नहाती थी
चाँद भी शरमाता था
कुछ देर को छुप जाता था.
पर चाँदनी को देखने
धीरे से आ जाता था
फूलों की बगिया,
जब खुशबू बिखराती थी
सारे घर को महकाती थी
इक उमंग जगाती थी
पपीहा जब आता था
इक गीत गुनगुनाता था
गीतों को सुनकर बादल भी आते थे,
बरखा को लाते थे
बूंदे जो पड़ती थी
धड़कन मचलती थी
अपने में खोई मैं
'पानी में कागज की कश्ती चलाती थी
महलों से प्यारा था
सारे जग में न्यारा था
वो प्यारा सा घर जो हमारा था
खुली जो आँख, टूटा वो सपना था
थी न कागज की कश्ती
न घर था वो अपना
दिखा जो सपना
न वा सपना था अपना
न घर था वो अपना
कितना प्यारा था सपना
– वर्षा श्रेयांस जैन
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