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प्रकृति का यह रूप निराला, कितना मनमोहक कितना प्यारा
सुबह-सवेरा जब हो जाता, सूरज अपना तेज फैलाता
बादल लहरा कर आता, इंद्रधनुष रंग बिखराता।
चिड़ियाँ की चहचहाहट से, चारों दिशाएँ गूंज जाती
कोयल जब गीत सुनाती, है हवाएँ भी मगन हो जाती।
तितलियाँ फूलों पर मंडरा कर, करती रहती अठखेलियाँ |
बारिश कहती ठुमक ठुमुक कर
हरियाली मेरी सहेलियाँ
फूलों से आती खुशबू,
ईश्वर का स्मरण कराती मंदिर के घंटों की ध्वनि,
रोम-रोम प्रफुल्लित कर जाती
तब मन कहता हे विधाता ! मनुष्य क्यों नहीं समझ पाता
प्रकृति का यह रूप निराला
कितना मनमोहक कितना प्यारा
-ऋषित श्रीवास्तव
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