––––––––––
ए मौत! जैसी भी है तू बड़ी प्यारी है
माँ जैसी तू भी दुनिया से बड़ी न्यारी है
जीवन रूपी नैया में कष्ट भरे हैं अनंत
मृत्यु रूपी सैया में सब कष्टों का है अंत
कब किस पल तू आएगी नहीं किसी को बोध
विन मोह माया के हरे प्राण वृद्ध जवाँ अबोध
भाग रहे हैं जो तुझ से उन्हें गले लगाती है
बुला रहे हैं जो तुझे उन्हें और तड़पाती है
चुपके से आ कर धीरे से कब अपना बनती है
माँ बन कर अपने आगोश में गहरी नींद सुलाती है
संघर्ष भरे जीवन का तू ही है अंतिम विराम
आत्मा की नव यात्रा पुनः चली अविराम
तेरी लीला तू ही जाने कब किस पर आएगी
तेरी राह तके "अचला" कब मुझे गले लगाएगी
– पुष्पा सिंह "अचला"
मध्यप्रदेश , भोपाल
No comments:
Post a Comment