हरसिंगार का पेड़
एक छोटा सा पौधा
मैंने अपने हाथों से लगाया था
अब घर की दीवारों - छतों से भी ऊंचा हो गया है।
इस हरसिंगार को देखकर
मां तुम बहुत याद आती हो।
कितना खुश होकर समेट लेती थी तुम ।
आंगन में बिखरे हुए फूलों को
देखो कितना फूल रहा है हरसिंगार
घर का आंगन फूलों से भरा पड़ा है
फिर भी कितना सूना है
और सूना सूना सा है मन
तुम जो नहीं हो यहां,
इन फूलों को देखकर तुम कितना उत्साहित हो जाती
सोचकर बहुत उदास हूं मैं।
सारा घर खुशबू से महक रहा है
और वह खुशबू
इस घर में बसी हुई तुम्हारी खुशबू से
मिल गई है
अब इन फूलों से तुम्हारी खुशबू आती है।
मैने फूलों को तस्वीरों में कैद कर लिया है
पर खुशबू को कैद करने के लिए
मेरे पास कुछ नहीं है।
जब तक मौसम है फूलों का
इन्हे रोज महसूस करूगी मैं।
और तुम्हे महसूस करूंगी
हर मौसम में ।
– प्रज्ञा अंकुर जैन
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