शीर्षक : जीवन यूं बीता जाता है...
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सुख दुख की इस धूप छाँव में,तूँ क्यूँ रीता रह जाता है,
जीवन यूँ बीता जाता है ।
एक प्यारा सा शब्द है बचपन,
पंख लगा वह उड़ जाता है,
खेल,खिलौने, बिस्कुट, टॉफी
सबके सब वह ले जाता है,
यौवन की वह दस्तक देकर
जोश नया इक भर जाता है,
जीवन यूँ बीता जाता है ।
उमंग और उत्साह से भरकर
यौवन सपने गढ़ जाता है,
नित नई मंज़िल को पाने
अधक परिश्रम कर जाता है,
जीवन की वो साँझ बताकर
अनुभव ढेरों दे जाता है,
जीवन यूँ बीता जाता है ।
ये कैसा पड़ाव उम्र का
आखिर तक साथ निभाता है,
क्या खोया-पाया जीवन भर
गणित यहीं तो लगता है,
लेकिन संग जो जाये उसके
ऐसा कुछ भी ना पता है,
बस रीता ही रह जाता है,
और जीवन यूँ बीता जाता है ।
– एडवोकेट सारिका जैन ‘शास्त्री’
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