इतना सहज है क्या?...
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इतना सहज है क्या?...
बैरल कुर्सी पर बैठ कर
कलम चलाना
इतना सहज है क्या?....
वैशाख माह की गर्म रातो मे
लम्बे समय तक जाग कर कविता लिखना
इतना सहज है क्या?...
दिन -रात हाथो मे कलम पकड़ कर
मन मे कविता लेखन के लिए
नए- नए विचार लाना
इतना सहज है क्या?...
चंद कविता लिख कर
बहुत सारे पैसों की चाहत रखना
इतना सहज है क्या?
उपन्यास लिख कर
लेखक कहलवाना
इतना सहज है क्या?
केवल नाम बता कर
किसी से अपना काम करवाना
इतना सहज है क्या...?
कविताओं मे दीप्तिक नाम कों
दीप से ख्यात करना
तुम सब समझते हो
उतना सहज है क्या......?
– दीप्तिक कुमार मेघवाल दीप
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