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मेरे सपनें तो कुछ और थे, मैं कर कुछ और रहा हूँ ।
नजर आती नहीं मंजिल, मैं फिर भी दौड़ रहा हूँ।
सुबह निकल जाता हूं. दिल में नई आस लिए।
आंखें भर आती है मेरी, दर्द का वो एहसास लिए ।
खुद को खुद ही कोसकर, दिल अपना तोड़ रहा हूं।
नजर आती नहीं मंजिल, मैं फिर भी दौड़ रहा हूं।
मैं दर दर भटकता हूँ, सपना साकार हो जाये।
दुनिया के आगे बहुत दिल ये लाचार हो जाये।
मैं सोचता है अकेले में. क्या है जिसे छोड़ रहा हूँ।
नजर आती नहीं मंजिल, मैं फिर भी दौड़ रहा हूं।
आग लगी है पेट में, पर जेब में पैसा नहीं है।
जो तरस खाये मुझे पर, कोई इंसान ऐसा नहीं है।
छाले पड़े हैं मेरे पांव में फटे जूतों को देख रहा हूँ।
नजर आती नहीं मंजिल, मैं फिर भी दौड़ रहा हूं।
माना वक्त बुरा है लेकिन, हौसला अभी टूटा नहीं मेरा ।
पूरा भरोसा है खुद पर मुझे, अभी मुक्कदर रूठा नहीं मेरा । एक दिन किस्मत चमकेगी. ये सोचकर आगे बढ़ रहा हूँ।
– पवन शर्मा, गांव बलैण, हिमाचल प्रदेश
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